कोरोना काल में बहुत सारे अनुभव दिल दहलाने वाले हुए, अंदर तक झकझोरने वाले हुए लेकिन श्री दिनेश सोनी जी के द्वारा सौंपा गया दायित्व को निभाते हुए बहुत गहरा आध्यात्मिक अनुभव हुआ उसके लिए मैं दिनेश भाई को तहे दिल से धन्यवाद करता हूं।
2013 में मालवीय नगर विधानसभा क्षेत्र की जनता ने जब पहली बार मुझे क्षेत्र के विधायक होने का दायित्व दिया तो मैंने अपने घर में सबसे कहा कि मेरा परिवार का दायरा अब बहुत बढ़ गया है और इसलिए घर में सदस्यों के साथ, बच्चों के साथ, मां के साथ या पत्नी के साथ समय गुजारने को कम मिलेगा।
मैंने कई बार अपने वक्तव्य में, मोहल्ला सभाओं में या आपके साथ बातचीत में इस बात का उल्लेख किया है कि मैं क्षेत्र के निवासियों को अपना परिवार मानता हूं। बहुत मौके आए जब क्षेत्र के साथियों के साथ परिवार की तरह उनके समस्याओं के समाधान के लिए काम करने का मौका मिला चाहे वह घर में डकैती का मामला हो या आग लग जाने का मामला हो या किसी सदस्य का इलाज कराने का मामला हो या किसी को बेटी की शादी में सहयोग करने का मामला हो या किसी बच्चे के आगे पढ़ाई कराने का मामला हो या किसी को विदेश से सकुशल वापस लाने का मामला हो या विदेश में फस गए किसी भारतीय को बचाकर लाने का मामला हो या किसी जरूरतमंद को राशन बांटने का मामला हो या खाना बांटने का मामला हो या सैनिटाइजेशन कराने का मामला हो या आधी रात को उठ उठ कर किसी जरूरतमंद के लिए पास बनवाने का मामला हो या ऐसे अनेकोंनेक काम लेकिन आज जो एम ब्लॉक मालवीय नगर के निवासी श्री दिनेश सोनी जी ने मेरे को एक दायित्व सौंपा और इसके कारण जो मन में गहरा भाव एक बेटे वाला आया, वह मुझे आप सबके परिवार का स्थाई सदस्य के रूप में आपके साथ जोड़ गया। अनेकोनेक साथियों ने इस खबर को जानने के बाद ऐसी ऐसी बातें लिखी कि मेरा जी भर गया, मुझे लगा कि मैंने जी लिया। यह सब कुदरत का बनाया हुआ है और मेरी एक आदत सी बन गई है कि अगर मेरे रास्ते कोई ऐसा काम आता है तो मुझे लगता है कि कुदरत ने आदेश किया है और फिर मैं चल पडता हूं और आप विश्वास नहीं करेंगे ऐसे सारे काम अपने आप होता चला जाता है। कोरोना काल में बहुत सारे अनुभव दिल दहलाने वाले हुए, अंदर तक झकझोरने वाले हुए लेकिन आज श्री दिनेश सोनी जी के द्वारा सौंपा गया दायित्व को निभाते हुए बहुत गहरा आध्यात्मिक अनुभव हुआ उसके लिए मैं दिनेश भाई को तहे दिल से धन्यवाद करता हूं। दिनेश भाई के पिता श्री के एल सोनी जो कि 84 वर्ष के थे कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाने के बाद एलएनजेपी में भर्ती कराए गए और 5 जून 2020 को उनका देहांत हो गया। मुसीबत यह हो गई कि पूरे का पूरा परिवार कोरोना पॉजिटिव पहले से ही था और नियम के अनुसार उनका बाबूजी के देह को स्वीकार करना और फिर संस्कार करना असंभव था। अस्पताल इस बात पर आमदा था कि बगैर परिवार के किसी व्यक्ति के आए ना तो वे बाबूजी के देह को सौंपेंगे और ना ही उनका दाह संस्कार हो पाएगा। दिनेश जी ने अपनी पूरी कोशिश कर ली लेकिन दूर के रिश्तेदार को या साथी को ढूंढ नहीं पाए और पिता के जाने के कारण और ऐसी स्थिति में अपने आप को पाने के कारण बहुत दुखी थे। मेरे मित्र श्री अनिल शर्मा जी ने मुझे बताया कि दिनेश जी बहुत ज्यादा चिंतित है और उसी वक्त दिनेश जी से मेरी बात हुई और उन्होंने कहा इस काम को आप करवा दें। यह जानकर मन में गहरा भाव उठा कि जब मैं इस बात को दिल की गहराइयों से मानता हूं कि मेरे विधानसभा में रह रहा हर व्यक्ति मेरा परिवार है, उनकी भलाई मेरी जिम्मेदारी है, उनका सुख दुख सांझा करना मेरा कर्तव्य है तो क्यों ना मैं ही इस दायित्व को निभा दूं और दिनेश जी को मैंने कहा कि आप मेरे नाम से एक एनओसी बनवा कर व्हाट्सएप कर दें। जिन जिन साथियों को यह बात पता चला उनसब ने मुझे मना किया लेकिन सबसे ज्यादा हृदय को छूने वाली बात यह हुई कि ना तो इस दायित्व को निभाने के लिए मेरी पत्नी ने मना किया और ना ही मेरी मां ने, शायद यह दोनों जानते थे कि क्षेत्र की जनता की समस्याओं को लेकर मैं कितना बेचैन और संवेदनशील रहता हूं और अगर एक बार कुछ ठान लेता हूं तो फिर उसे करके ही मानता हूं चाहे फिर कितनी भी FIR झेलनी पड़े। कई बार मेरे परिवार ने मुझसे कहा है कि उनसे ज्यादा बेहतर तो क्षेत्र की जनता है जिनकी बात को मैं टालता ही नहीं हूं और इसलिए कोई बात मनवाने के लिए अगर वह क्षेत्र की जनता के रूप में आए तो शायद मैं मान जाऊंगा।
दिनेश जी ने मुझे एनओसी व्हाट्सएप कर दिया जिसे मैंने दफ्तर को भेजकर तैयारी करने को कहा। अस्पताल तक के साथियों ने मुझे आने को मना किया लेकिन जुनून और अपनों के लिए किसी भी हद तक जाने का जुनून पता नहीं कहां से आता है मैंने उन्हें कहा कि आप जल्द से जल्द तैयारी करें क्योंकि दिनेश जी की पीड़ा उनकी आवाज में मुझे दिख रही थी। अस्पताल ने सोमवार यानी 8 जून 2020 को आने की बात कही और मैं तैयार हो गया। पूरा सोमवार इंतजार करता रहा लेकिन पेपर वर्क खत्म ही नहीं हो रहा था और शाम को मुझे बताया गया कि आप कल आ जाए लेकिन आए तभी जब आपको यहां से फोन कॉल जाए। मंगलवार यानी 9 जून 2020 को दिनेश जी को मैंने 1:30 बजे दोपहर का समय दे दिया क्योंकि उनकी मंशा थी कि जब बाबूजी का वहां दाह संस्कार हो रहा हो उस वक्त घर में ही परिवार समेत वह उनकी याद में बैठ जाए या पूजा पाठ कर ले। कोई 1:00 बजे दोपहर में एलएनजेपी के मेडिकल डायरेक्टर साहब के कमरे में अपने दो साथी अवनीश और समीर के साथ पहुंच गया। मेडिकल डायरेक्टर डॉ सुरेश कुमार जी ने भी मेरे फैसले पर अचरज जताया और उनसे मिलने आए सभी व्यक्तियों को मेरे फैसले सुना कर कह रहे थे कहीं ऐसा विधायक देखा है आपने लेकिन उन्हें क्या पता था यह उपकार मैं दिनेश भाई पर नहीं कर रहा था बल्कि वह मुझ पर कर रहे थे। कुछ समय बाद उन्होंने मुझे और मेरे साथियों को अपने गार्ड के साथ मोर्चरी के लिए विदा किया। जब वहां पहुंचा तो चेहरे पर फेस मास्क होने के कारण लोग पहचान नहीं पा रहे थे तो किसी को फुसफुसाते सुना कि यह व्यक्ति तो सोमनाथ भारती लगता है शायद उन्होंने मेरी आवाज पकड़ ली थी। फिर मोर्चरी की कार्यालय में मुझे ले जाया गया जहां डॉ मोनिसा से मुलाकात हुई और बाकी कार्रवाई को पूरा किया गया और मुझे बाबूजी के मृत्यु प्रमाण पत्र को सौंपा गया। क्योंकि पहले से लगे एंबुलेंस में कई पार्थिव शरीर को रखा जा रहा था, मुझे मोर्चरी के दफ्तर में काफी समय बैठना पड़ा लेकिन इस दौरान बातचीत में वहां के एक अधिकारी चमन जी से जानकारी प्राप्त हुई कि 50% मृत्यु को प्राप्त हुए लोग कोरोनावायरस से पीड़ित थे। जो स्टाफ मोर्चरी से सदगति प्राप्त साथियों को बाहर लेकर आ रहे थे उन्हें तो लगी नहीं रहा था कि वहां आए लोग कोरोना वायरस से डर रहे हैं। डॉ मोनिका से जब मैंने पूछा कि क्या कोरोना वायरस से पीड़ित व्यक्तियों के पार्थिव शरीर से कोरोनावायरस का कोई डर होता है तो उन्होंने हां में जवाब दिया लेकिन साथ में यह कहा कि ऐसा डर तभी होता है जब कोई पार्थिव शरीर को ज्यादा हिलाए डुलाए। फिर भी मेरे मन में रंच मात्र भी कोई डर पैदा ना हुआ। एक भाव जरूर मन में आया कि अगर कोरोना संक्रमण मुझे हो गया तो मेरी पत्नी, मां और 9 साल की बेटी और 7 साल के बेटे को संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा लेकिन तभी मदर टेरेसा का मुझे ख्याल आया कैसे उन्होंने छुआछूत की कई बीमारियों से पीड़ित लोगों का खुले हाथों से सेवा की और कभी उन्हें कोई बीमारी नहीं हुआ और मुझे अपने लड़कपन के दिन याद आए कैसे राधा स्वामी सत्संग ब्यास के आई कैंप में बहुत उत्साह के साथ वर्षों आंख मोतिया के ऑपरेशन करवाने वाले बुजुर्गों का टॉयलेट उठाने की सेवा किया करता था। तुरंत ही आवाज लगी श्री के एल सोनी जी और मैं अपने साथियों के साथ पार्थिव शरीर का पहचान करने के लिए दौड़ पड़ा।
मोर्चरी के एक स्टाफ ने पता नहीं कैसे मुझे पहचान लिया और दाढ़ी, फेस मास्क उसके ऊपर फेस शिल्ड भी मेरे पहचान को छुपा ना पाई। बहुत आदर से बाबूजी की पैक्ड शरीर को सिर के तरफ से खोल कर दिखाया जिससे मैंने दिनेश भाई के द्वारा भेजे गए तस्वीर के साथ मैच किया और आखरी दर्शन के रूप में दो फोटो भी खींच ली। पैकिंग पर चिपके स्टिकर की फोटो खींच ली क्योंकि बाबूजी का पूरा नाम और सारा विवरण उसमें था जैसे कि कब आए, कब देहांत हुआ वगैरा-वगैरा। फिर उन्हें बहुत ही आदर सम्मान से एंबुलेंस में पड़े बॉक्स में डाला गया और सभी खुसर फुसर कर रहे थे, शायद औरों की तरह वो भी जानना चाह रहे थे कि मैं वहां खुद पार्थिव शरीर को क्यों लेने आया था। अब कितनों को समझाता? मन में परमात्मा का धन्यवाद करते हुए कि उसने मुझे इस काबिल समझा अपनी गाड़ी में बैठ गया और साथियों के साथ एंबुलेंस के पीछे पीछे निगम बोध घाट पहुंच गया। वहां बहुत सारे लोग अपने अपने प्यारों के पार्थिव शरीर को लेकर पहुंचे हुए थे क्योंकि मेरे साथी रवि नंदन ने पहले से ही वहां के पंडित श्री अमन शर्मा जी से बात करके तैयारी करवा ली थी और चुकी एमसीडी कार्यालय में श्री अमर जी ने मुझे पहचान लिया था मुझे कुछ खास तकलीफ नहीं हुई। जल्दी से पर्ची काट दी गई और अमन जी ने पूरी मदद की। लकड़ियों के लिए रिक्वेस्ट दे दी गई और एंबुलेंस को लेकर दाह संस्कार वाले जगह पर हम पहुंच गए, वहां मारा मारी थी। जगह नहीं लोगों को मिल रही थी लेकिन मुझे अमन जी ने और उनके कारण और शायद मेरे विधायक होने के कारण चार पांच लोग और आ गए और बाबूजी को लकड़ियों की सैया पर सुला दिया और मुझे पंडित जी ने पूछा “परिवार में से कौन है, आग कौन देगा” उस पर मैंने कहा मैं दूंगा, मैं इनके परिवार से हूं पंडित जी भी चौक गए लेकिन उनके पास कोई चारा नहीं था उन्होंने एक लकड़ी के फट्टे पर कपूर की कई ढेलियां रखकर कई बार प्रयास करने के बाद आग लगाई और मुझे मंत्रोचार करते हुए चक्कर काटने को कहा उनकी आज्ञा का पालन करते हुए बाबूजी के पार्थिव शरीर को पंचतत्व में बिलीन करने के लिए आग के सुपुर्द कर दिया गया। मुझे नहीं पता कि मैं दिनेश भाई के आशाओं पर खरा उतरा या नहीं उतरा लेकिन मुझे अपने पिताजी को आग के सुपुर्द करते हुए जो अनुभव 1 मई 2016 को हुआ था वही अनुभव एक बार फिर रोगंटे खड़ा कर गया।
मेरे पिता जो कि आध्यात्मिक घुमक्कड़ थे और सारी जिंदगी परिवार को लेकर संतो (देवराहा बाबा, अनुकूल ठाकुर जी, महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज, झुनझुनीया बाबा, जय गुरुदेव, महर्षि महेश योगी, ताराचंद जी महाराज दिनोद वाले, राधास्वामी दयालबाग, ओशो, पीरे मूंगा और फिर राधा स्वामी सत्संग ब्यास) के पास जाते रहे और सत्संग का लाभ दिलाते रहे। मेरे अंदर जो हर एक व्यक्ति में परमात्मा का दर्शन करने का भाव है यह मेरे पिता की देन है।
बाबूजी को अग्नि को सुपुर्द करने के बाद जब गाड़ी में बैठा तो बाबूजी के नाती का फोन धन्यवाद करने को आया शायद बेंगलुरु में रहते हैं उन्होंने कहा कि फेसबुक लाइव में उन्होंने पूरी यात्रा देखी और भावुक हो गए। उनके बाद बाबूजी के बेटियों का और उनके बच्चों का, दिनेश भाई का सबका भाव भरा फोन आया, मेरे पास शब्द नहीं थे लेकिन मैं कहता रहा जो परमात्मा ने चाहा उसने मुझसे कराया, आप धन्यवाद उसको दो।
बाबूजी ने संत कबीर की वाणी “ज्यों के त्यों धर दीनी चदरिया” को चरितार्थ करते हुए सब को छोड़कर चले गए। मेरे दो साथी श्री अनिल शर्मा जी ने और श्री कुलबीर सिंह जी ने संस्कार के कुछ फोटो मेरे मोहल्ला सभा की ग्रुपों में डाल दिया था जिसे देख क्षेत्र की जनता ने क्या-क्या नहीं मुझे बड़ा दिखाते हुए कहा।
कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट की जानी-मानी वकील और बहुत ही नेक आत्मा नीति बाग की श्रीमती सुषमा मलिक जिनका कोई अपना बच्चा नहीं था और मेरे से बड़े करीब थी के चोला त्यागने पर मुझे दुनिया का एक और रूप का दर्शन हुआ था। क्षेत्र का विधायक जब उनके शरीर को एंबुलेंस में रख रहा था तब कुछ परिवार के लोग मकान के ताले बदल रहे थे। बहुत ठेस पहुंची थी लेकिन परमात्मा ने मुझे कुछ ऐसे अनुभव कराएं कि हर वक्त भीतर कहीं चलता रहता है कि भाई मुझे भी एक दिन जाना है। इसमें भी बहुत कुछ और कहने को है, कभी और लिखूंगा!
श्री के एल सोनी जी के जाने और मेरे द्वारा उनका दाह संस्कार किए जाने पर एन ब्लॉक के गौरव माटा जी ने यहां तक कह दिया “सुख के सब साथी, दुख में ना कोई” को सोमनाथ जी ने झूठा साबित कर दिया। बड़ी बात कह दी, मैं कौन हूं करने वाला? मैं सिर्फ निमित्त मात्र हूं! कर्ता का भाव ही तो हर दुख का कारण है, करने वाला वो कराने वाला वो।
शाम को श्री अनिल शर्मा जी का भावना में बहा ले जाने वाला फोन आया और उन्होंने पता नहीं क्या क्या नहीं कह दिया लेकिन मैं इस बात को लेकर तटस्थ हूं कि करने वाला वो कराने वाला वो।
मेरी एक वकालत के साथी अमिता जी ने भाव भरा एक चिट्ठी लिख डाली लेकिन फिर अंतरतम से यही बात पैदा हुई मैं कौन हूं? करने वाला वो है कराने वाला भी वही है।
ओम शांति!